Add To collaction

अमन का पैगाम

अमन का पैगाम!

आग लगाते हैं  जो वो भी यहीं रहते हैं,
लगी आग बुझानेवाले भी यहीं रहते हैं।
बहने दो  गंगा-जमुनी तहजीब  अपनी,
अमन का पैगाम देनेवाले यहीं रहते हैं।

ये मुल्क हमने पाया नदियों खून बहाकर,
अपना सर्वस्व लुटानेवाले यहीं रहते हैं।
हुकूमत की बदौलत कुछ तबाही मचाते,
अच्छी  सियासतवाले भी यहीं रहते हैं।

सरकारी  इम्दाद खा जाते हैं मुलाजिम,
नमक का दरोगा जैसे भी यहीं रहते हैं।
जवानी के दिनों में  इतना  मुँह मत मार,
देख एक अदद  बीबीवाले यहीं  रहते हैं।

रंजो-गम  से  भरी है  ये दुनिया  हमारी,
मगर  हँसने-हँसानेवाले  यहीं  रहते  हैं।
अक्ल से तू  बौना है  मगर  दुनिया  नहीं,
इंसाफ  करने वाले  भी   यहीं  रहते  हैं।

तुम्हारी  बद्दुवाओं  से   वो   मरेगा  नहीं,
दुआ   देने   वाले  भी  तो यहीं  रहते  हैं।
मत उतार तू किसी के तन का वो कपड़ा,
देख  कफन  देनेवाले  भी  यहीं  रहते  हैं।

रामकेश यादव (कवि,साहित्यकार),मुंबई

   9
4 Comments

Punam verma

23-Dec-2022 09:37 AM

Very nice

Reply

Mahendra Bhatt

23-Dec-2022 08:56 AM

बहुत ही सुन्दर

Reply

Sachin dev

22-Dec-2022 06:10 PM

Nice 👌

Reply